Natasha

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तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी

एक घर के सामने एक आदमी गली में बँधी गाय के पास खड़ा सानी-पानी कर रहा था। पास ही किसी घर में से प्याले खनकने और साथ में चूड़ियाँ खनकने की आवाज़ आई। चाय तैयार हो रही थी। इतने में सामने से कोई औरत दुपट्टे में मुँह-सिर लपेटे मुँह से गुनगुनाती हुई पास से गुज़री। उसने हाथ में कटोरी उठा रखी थी। कोई औरत मन्दिर या गुरुद्वारे में माथा नवाने जा रही है, नत्थू ने मन-ही-मन कहा। बड़े सहज सामान्य ढंग से दिन का व्यापार शुरू हो रहा था। तभी गली के सिरे की ओर से नत्थू को इकतारा' बजाने और साथ में किसी फ़कीर के गाने की आवाज़ आई। यह आवाज़ वह पहले भी सुन चुका था, पर उसने इस फ़कीर को कभी देखा नहीं था। प्रभात के झुटपुटे में यह फ़कीर अक्सर इकतारा बजाता और धीमी आवाज़ में गाता हुआ शहर की गलियों में से गुज़र जाया करता था, विशेषकर रमज़ान के दिनों में जब मुसलमान लोग सुबह-सवेरे उठकर अपना रोज़ा खोलते थे। नज़दीक पहुँचने पर उसने देखा फ़कीर ऊँचे क़द का, लम्बे छरहरे बदन का बूढ़ा आदमी था, छोटी-सी सफेद दाढ़ी और सिर पर चिन्दिया टोपी और लम्बा चोगा और कन्धे पर से बड़ा-सा झोला लटक रहा था। नत्थू रुक गया। वह चाहता था कि फ़कीर के गीत के शब्द उसके कान में पढ़ें :




"तैनूँ गाफला जाग न आई चिड़ियाँ बोल रहियाँ...!" [ऐ गाफ़िल, तू अभी तक सोया पड़ा है जबकि पक्षी चहचहाने लगे हैं]




फ़कीर गीत गाता हुआ आ रहा था। इकतारे की धीमी-सी आवाज़ जो अक्सर नत्थू के सपनों में घुलमिल जाया करती थी और सोए-सोए भी उसे प्यारी लगती थी, अब भी उसे बड़ी मीठी लगी। उसने जेब में से एक पैसा निकालकर फ़कीर के हाथ में दे दिया।




“अल्लाह सलामत रखे! घर भरे रहें!" फ़कीर ने दुआ दी।




नत्थू आगे बढ़ गया।




गली पार करने पर वह कुछ-कुछ उजाले में आ गया। यहाँ से ताँगा हाँकनेवाले गाड़ीवानों का मुहल्ला शुरू हो जाता था। सड़क पर पहुँच जाने पर भी दृश्य बहुत कुछ बदला नहीं था, केवल यहाँ उजाला हो चला था। सड़क किनारे दो-तीन ताँगें खड़े थे, जिनके बम आसमान की ओर उठे हुए मानो सबके लिए दुआ माँग रहे थे। लम्बी दीवार के सामने खड़ा एक गाड़ीवान अपने घोड़े को 'खरहरा' कर रहा था। पास में बैठी दो औरतें गोबर की थापियाँ बना-बनाकर अभी से मिट्टी की दीवार पर लगा रही थीं। सड़क के बीचोबीच एक घोड़ा अपने-आप, अकेला ही सहज-स्वाभाविक गति से चहलकदमी कर रहा था। प्रातःकाल के शान्त सुहावने समय में जगह-जगह हल्की-हल्की जीवन की गति अँगड़ाइयाँ ले रही थी।





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